Sunday, October 9, 2011

शबाना आज़मी के लिए...

शब् भी ढूँढती है मिलने का तुमसे बहाना...
सहर महफूज़ है इन परीजाद आँखों में...
कैफ़ी की कैफियत है इनमे...
और लफ्ज़-ए-जावेद-ए-नूर का ठिकाना....

याद रहेगी वोह शाम शायराना...
जब मिले थे जावेद, कैफ़ी और शबाना...

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