आज हम बार बार मिल रहे थे...
बुझ गए जो चिराग प्यार के कई अरसों पहले...
वो जल कर बार बार बुझ रहे थे..
नज़रे उठाने की हिम्मत दोनों में नहीं थी...
लब अन्दर ही अन्दर कुछ हिल रहे थे..
उस बिच बाज़ार के शोर गुल में आहिस्ता से..
हमारे साँसों के सन्नाटे बात कर रहे थे...
तुम्हारी हर अदा की नजाकत को आज भी देखते ही लगा..
की कहीं फूल खिल रहे थे...
काश यह बेरेहेम वक़्त वहीँ रूक जाता..
मेरे हाथ उठ के यही दुआ कर रहे थे...
पर मेरी दुआ का कोई असर न था..
धड़कने वक़्त की बेरहमी की याद दिला रहे थे...
फिर कुछ इस तरह देखा तुमने...
माझी के कुछ ज़ख्म सिने पे उभर रहे थे...
तुम्हारी आँखें बता रही थी तुम्हारे दिल का हाल...
कई पल जो साथ बिताये थे आज पलट के सजा दे रहे थे...
कुछ देर बाद हम अपने अपने रास्ते पे निकल पड़े...
हमारे रास्ते न कभी मिले... न मिलने थे....
No comments:
Post a Comment