न जाने कब से सफ़र कर रहा हूँ इस धरती पर...
हर मंज़र जैसे देखा देखा सा लगता है...
हर रिश्ता आजमाया सा लगता है...
चाँद सितारे देखता हूँ तो 'deja vu' सा होता है...
हर शक्स जिससे मिलाता हूँ जैसे मेरा हमसफ़र था कभी...
वजूद की गहराई में कितने सवाल है...
हर रोज़ उनका जवाब ढूँढता रहता हूँ...
न जाने कितने जिस्मों से हो कर निकली है रूह मेरी...
आँख बंद करता हूँ तो चीखे आती है अन्दर से...
कभी लगता है सब कुछ है अन्दर मेरे..
कभी एक खला सी लगाती है...
क्या मुझे पाना है? मै कौन हूँ? किस लिए हूँ यहाँ? ...
इन्ही सवालों का जवाब पाना ही शायद जिंदगी है...
पर इसकी इन्तहा कहाँ है??
तुझ से मिलाता हूँ तो एक सुकून सा दौड़ता है रूह में...
जैसे समंदर किनारे शफक उतरे...
और इस अनजान सफ़र का अंजाम नज़र आता है...
आ चल मेरे साथ के मुक्त हो जाए इस सफ़र से...
सुना है उस पार एक और धरती है...
हर मंज़र जैसे देखा देखा सा लगता है...
हर रिश्ता आजमाया सा लगता है...
चाँद सितारे देखता हूँ तो 'deja vu' सा होता है...
हर शक्स जिससे मिलाता हूँ जैसे मेरा हमसफ़र था कभी...
वजूद की गहराई में कितने सवाल है...
हर रोज़ उनका जवाब ढूँढता रहता हूँ...
न जाने कितने जिस्मों से हो कर निकली है रूह मेरी...
आँख बंद करता हूँ तो चीखे आती है अन्दर से...
कभी लगता है सब कुछ है अन्दर मेरे..
कभी एक खला सी लगाती है...
क्या मुझे पाना है? मै कौन हूँ? किस लिए हूँ यहाँ? ...
इन्ही सवालों का जवाब पाना ही शायद जिंदगी है...
पर इसकी इन्तहा कहाँ है??
तुझ से मिलाता हूँ तो एक सुकून सा दौड़ता है रूह में...
जैसे समंदर किनारे शफक उतरे...
और इस अनजान सफ़र का अंजाम नज़र आता है...
आ चल मेरे साथ के मुक्त हो जाए इस सफ़र से...
सुना है उस पार एक और धरती है...
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