कई बार साहिल पे मुझे शाम मिलती है...
सूरज ऐसे उतरता है साहिल पे जैसे अभी अभी लोकल ट्रेन से उतरा हो...
और चाँद ऐसे निकलता है जैसे किसी 'factory' की 'shift' बदली हो...
पंछी ऐसे उड़ते है जैसे निकले हो 'shopping' पे..
साहिल पर पड़े बड़े बड़े पत्थर घूरते है समंदर को जैसे किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो...
मद्धम से हवा के झोंके चलते है जैसे कहीं दूर कोई ग़ज़ल सुनाई दे...
और डूबते डूबते सूरज, उस दोस्त की तरह जो रोज़ मिलता है...
मुझसे कहता है "मै कल फिर आऊंगा"
और मै उसे अलविदा कहके रात को गले लगाता हूँ...
जैसे सालों बाद कोई स्कूल का दोस्त मिलता है...
Monday, March 29, 2010
Friday, March 19, 2010
'happy journey'
लोकल ट्रेन की हर टिकेट पे लिखा होता है 'happy journey'....
मुझे लगता था की यह बहुत ही अच्छी बात है....
जब दादर स्टेशन पर कदम रखा तो देखा की यह तो मजाक था.....
ट्रेन का भी अपना एक 'sense of humour' है....
मुझे लगता था की यह बहुत ही अच्छी बात है....
जब दादर स्टेशन पर कदम रखा तो देखा की यह तो मजाक था.....
ट्रेन का भी अपना एक 'sense of humour' है....
Sunday, March 14, 2010
traffic jam....
कभी कभी यूँही बैठे बैठे वक़्त हाथों से फिसल जाता है...
और कभी कभी यूँ तन के बैठ जाता है जैसे कोई जिद पे अड़ा हो..
वक़्त की राहों में भी आजकल "traffic jam" होने लगा है....
Thursday, March 11, 2010
वक़्त.....
वक़्त गुजरने का जब कोई करे इंतज़ार तो कितना धीरे गुजरता है ये...
आँखे सेकंड की सुई का पीछा करती है...
बार बार नज़र उस मिनट की सुई की तरफ जाती है...
जो लगता है statue बन कर खड़ी हो...
और जब वोह पल सामने आता है...
तो ऐसे लगता है जैसे...
कोई किसी ख़ूबसूरत लड़की का सड़क पर इंतज़ार कर रहा हो..
और वोह आपको बिना देखे बस सामने से गुज़र जाती है...
कितना बेरेहेम है यह वक़्त..
इंतज़ार तो कराता है.. पर सामने आते ही बीत जाता है......
आँखे सेकंड की सुई का पीछा करती है...
बार बार नज़र उस मिनट की सुई की तरफ जाती है...
जो लगता है statue बन कर खड़ी हो...
और जब वोह पल सामने आता है...
तो ऐसे लगता है जैसे...
कोई किसी ख़ूबसूरत लड़की का सड़क पर इंतज़ार कर रहा हो..
और वोह आपको बिना देखे बस सामने से गुज़र जाती है...
कितना बेरेहेम है यह वक़्त..
इंतज़ार तो कराता है.. पर सामने आते ही बीत जाता है......
corporate....
कॉर्पोरेट लाइफ भी बड़ी बदनसीब है...
यहाँ 'customer' से ज्यादा ज़रूरी है 'contacts'....
यहाँ 'common sense' से ज्यादा ज़रूरी है 'dressing sense'...
यहाँ 'self-confidence' से ज्यादा जरूरी है 'self-image'...
यहाँ 'working' से ज्यादा जरूरी है 'networking'...
यहाँ 'ability' से ज्यादा जरूरी है 'flexibility'...
कॉर्पोरेट शब्द कहते हुए जब होट गोल हो जाते है.. उसी तरह का एक कुआँ सा लगता...
हज़ारों लोग अपने ख्वाब इस कुँए में डालते है पुरे होने के लिए...
पर यह कुआँ भी है फर्जी.....
किसी आम कुँए में पत्थर डालो तो उसके गिरने की आवाज़ ऊपर तक सुनाई देती है...
यहाँ तो बस चीज़ें गुम हो जाती है... और आवाज़ तक नहीं होती....
यहाँ 'customer' से ज्यादा ज़रूरी है 'contacts'....
यहाँ 'common sense' से ज्यादा ज़रूरी है 'dressing sense'...
यहाँ 'self-confidence' से ज्यादा जरूरी है 'self-image'...
यहाँ 'working' से ज्यादा जरूरी है 'networking'...
यहाँ 'ability' से ज्यादा जरूरी है 'flexibility'...
कॉर्पोरेट शब्द कहते हुए जब होट गोल हो जाते है.. उसी तरह का एक कुआँ सा लगता...
हज़ारों लोग अपने ख्वाब इस कुँए में डालते है पुरे होने के लिए...
पर यह कुआँ भी है फर्जी.....
किसी आम कुँए में पत्थर डालो तो उसके गिरने की आवाज़ ऊपर तक सुनाई देती है...
यहाँ तो बस चीज़ें गुम हो जाती है... और आवाज़ तक नहीं होती....
Wednesday, March 10, 2010
'मसाला डोसा' - त्रिवेणी
किसी को मसाला डोसा खाते हुए देखना मुझे बड़ा ही अजीब लगता है...
फोर्क के दांतों से और 'knife' की धार से उसको चिर फाड़ कर खाना अनोखा है....
वाकई...... "man is a social animal"!!!!...
फोर्क के दांतों से और 'knife' की धार से उसको चिर फाड़ कर खाना अनोखा है....
वाकई...... "man is a social animal"!!!!...
Wednesday, March 3, 2010
"खटमल"
और फिर यूँ हुआ... रात एक खटमल ने जगा दिया...
फिर यूँ हुआ... खटमलों की वोह दरी खुल गयी...
और यूँ हुआ... खुजली की वोह लड़ी खुल गयी...
जागती रही नींद मेरी जागते रहे 'tubelight' की रौशनी के तले...
फिर नहीं सो सके इक सदी के लिए हम दिलजले....
और फिर यूँ हुआ... खटमलों के झुण्ड ने उड़ा दिया...
फिर यूँ हुआ... नींद के नक्श सब धुल गए...
और यूँ हुआ.... गददे थे खटमलों में रुल गए...
चादर को ओढ़े हुए जागते रहे खुजलाते हुए... खटमलों से घिरे....
फिर नहीं सो सके इक सदी के लिए हम दिलजले....
फिर यूँ हुआ... खटमलों की वोह दरी खुल गयी...
और यूँ हुआ... खुजली की वोह लड़ी खुल गयी...
जागती रही नींद मेरी जागते रहे 'tubelight' की रौशनी के तले...
फिर नहीं सो सके इक सदी के लिए हम दिलजले....
और फिर यूँ हुआ... खटमलों के झुण्ड ने उड़ा दिया...
फिर यूँ हुआ... नींद के नक्श सब धुल गए...
और यूँ हुआ.... गददे थे खटमलों में रुल गए...
चादर को ओढ़े हुए जागते रहे खुजलाते हुए... खटमलों से घिरे....
फिर नहीं सो सके इक सदी के लिए हम दिलजले....
वो और मै.......
उसका दिन कट जाता है और उसे पता भी नहीं चलता
मेरा.... कटता नहीं इन्तेजार मै
उसकी रात गुज़रती है ख्वाबों के साहिल पे
मेरी रात जैसे किसी भिकारी की नींद रेलवे स्टेशन पे....
मेरी रात जैसे किसी भिकारी की नींद रेलवे स्टेशन पे....
उसके कदम जैसे चाँद की परछाई पानी पर
मेरा कदम जैसे पड़ता हो गोबर पे.....
उसकी पलकें जब झपकती है तो जैसे एक लेहेर उतर आये साहिल पे....
मेरी आँखें जैसे सजी हो मोतिया बिन्द से....
उसकी आवाज़ जैसे गुलज़ार की कोई नज़्म...
मेरी आवाज़ जैसे गा रहा हो कोई बाथरूम में....
उसके ट्रेन का टिकट हमेशा "first A/C"
मेरा टिकट "wait list" 62 से 42 पे....
उसकी जिंदगी जैसे दादी माँ की कहानी
मेरी जिंदगी जैसे ली हो उधार पे...
उसको को खुदा ने 'customized' बनाया था
और मुझे बना दिया 'made to order' पे....
मेरा कदम जैसे पड़ता हो गोबर पे.....
उसकी पलकें जब झपकती है तो जैसे एक लेहेर उतर आये साहिल पे....
मेरी आँखें जैसे सजी हो मोतिया बिन्द से....
उसकी आवाज़ जैसे गुलज़ार की कोई नज़्म...
मेरी आवाज़ जैसे गा रहा हो कोई बाथरूम में....
उसके ट्रेन का टिकट हमेशा "first A/C"
मेरा टिकट "wait list" 62 से 42 पे....
उसकी जिंदगी जैसे दादी माँ की कहानी
मेरी जिंदगी जैसे ली हो उधार पे...
उसको को खुदा ने 'customized' बनाया था
और मुझे बना दिया 'made to order' पे....
त्रिवेणी
रोज़ सुबह खुद से यह वादा करता हूँ की आज कुछ लिखूंगा.....
सुबह की धुप सरकते सरकते शाम की तरफ बढती जाती है पर कागज़ पर कुछ भी सरकता नहीं......
तेरे हुस्न को लफ़्ज़ों में बांधना कितना मुश्किल है.......
सुबह की धुप सरकते सरकते शाम की तरफ बढती जाती है पर कागज़ पर कुछ भी सरकता नहीं......
तेरे हुस्न को लफ़्ज़ों में बांधना कितना मुश्किल है.......
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